Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
परलोक में सेटेलाइट नौकरशाही और अवसरवाद पर नए विषय और हल्की-फुल्की शैली के साथ एक तीखा व्यंग्य है। पहले ही पन्ने से बरुण जी यह एहसास दिला देते हैं कि पढ़ने वाले को किस स्तर का मजा और हास्य मिलने वाला है। यह हास्य आपको हंसाता है, लेकिन कहीं-कहीं नश्तर से इस तरह से चुभाता है कि आप तड़प कर रह जाते हैं।
परलोक में सेटेलाइट नौकरशाही और अवसरवाद पर नए विषय और हल्की-फुल्की शैली के साथ एक तीखा व्यंग्य है। पहले ही पन्ने से बरुण जी यह एहसास दिला देते हैं कि पढ़ने वाले को किस स्तर का मजा और हास्य मिलने वाला है। यह हास्य आपको हंसाता है, लेकिन कहीं-कहीं नश्तर से इस तरह से चुभाता है कि आप तड़प कर रह जाते हैं।
किसी ने कहा बड़ा आक्रामक लिखते हो, तुम्हे तो पत्रकार होना चाहिए। गलतफहमी में पत्रकार बन निकले। पत्रकार बनते-बनते, पता ही नहीं चला कब नौकरी करने लगे। पत्रकारिता की। आम आदमी की आवाज, तो दूर खुद की आवाज घुट गई।
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