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नागासाकी परमाणु हमले में अपने माँ-बाप, दोस्तों-रिश्तेदारों को खो देने के बाद अमन और शांति ने अपनी बचपन की दोस्ती को रिश्ते का रूप देने का निर्णय लिया ताकि दोनों एक-दूसरे का सहारा व संबल बन सकें। दोनों ने कसम ली कि वो दुनिया को समझा-बुझाकर, अपनी व्यथा और दुनिया की दुर्दशा की बात से आश्वस्त करके इस धरती से परमाणु हथियारों की फसल खत्म करेंगे। मगर उन्हें पता नहीं था कि जिस दुनिया में अमन और शांति का राज कायम करने के लिये उन्होंने इतनी बड़ी कसम ली है, उस दुनिया की फितरत कुछ और ही है। आखिरकार, एक दिन इस दुनिया की अपनी ही फितरत दुनिया पर कहर बनकर टूट पड़ी।

Short Synopsis

नागासाकी परमाणु हमले में अपने माँ-बाप, दोस्तों-रिश्तेदारों को खो देने के बाद अमन और शांति ने अपनी बचपन की दोस्ती को रिश्ते का रूप देने का निर्णय लिया ताकि दोनों एक-दूसरे का सहारा व संबल बन सकें। दोनों ने कसम ली कि वो दुनिया को समझा-बुझाकर, अपनी व्यथा और दुनिया की दुर्दशा की बात से आश्वस्त करके इस धरती से परमाणु हथियारों की फसल खत्म करेंगे। मगर उन्हें पता नहीं था कि जिस दुनिया में अमन और शांति का राज कायम करने के लिये उन्होंने इतनी बड़ी कसम ली है, उस दुनिया की फितरत कुछ और ही है। आखिरकार, एक दिन इस दुनिया की अपनी ही फितरत दुनिया पर कहर बनकर टूट पड़ी।

Author Bio

बिहार के मधेपुरा जिला में एक मध्यमवर्गीय किसान के घर जन्मे प्रभात रंजन ने धूल-धुसरित पृष्ठभूमि से अपनी जीवन-यात्रा शुरू की। पिताजी की महत्वाकांक्षाओं ने इन्हें आंशिक साक्षरता दर व दयनीय जीवन-शैली वाली बस्ती से निकाल कर बोर्डिंग पहुँचाया। इन्होंने विज्ञान से स्नातक की डिग्री तो हासिल की, मगर साहित्य-प्रेम और लेखन-प्रवृत्ति ने इन्हें कभी साहित्य से अलग न होने दिया। 1993 में प्रकाशित इनके पहले उपन्यास ‘दोस्ती और प्यार' ने इन्हें व्यावसायिक लेखन के कई अवसर प्रदान किये। इनके कई टेलीफिल्म्स व धारावाहिक विभिन्न चैनलों से प्रसारित हो चुके हैं। प्रभात रंजन, बतौर फिल्म-पत्रकार नवभारत टाइम्स, अमर उजाला सहित कई समाचार पत्र समूह के लिये लिखते रहे, मगर पुस्तक-लेखन का मोह त्याग न सके। शायद इसीलिये, बीच-बीच में समय निकाल कर इन्होंने ‘एक नई प्रेमकहानी', ‘सितारों के पार : गुलशन कुमार', ‘कोशी पीड़ित की डायरी' पुस्तकें लिखीं, जो विभिन्न प्रकाशनों से प्रकाशित हुर्इं।

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