Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
रत्नगर्भा धरती झारखंड प्रांत के गिरिडीह जिले के स्वातंत्र्योत्तर सातवें दशक से दसवें दशक के कालखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित अपने ढंग का एक अनूठा आंचलिक उपन्यास, जो अतीत को वर्तमान से जोड़ता और उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख करता है। यह उपन्यास एक ऐसा उपवन है जहाँ नुकीले काँटे भी हैं और सुवासित सुमन भी। पुटुस, सेमल और पलाश के पुष्प भी हैं तो चम्पा, चमेली और रातरानी की खुशबू भी। यह प्रतिनिधित्व करता है, समष्टिगत विश्लेषण करता है, भ्रमण कराता है सम्पूर्ण उपवन का, और साक्षात कराता है इसके विविध पुष्पों के जीवन का, दर्शन का। सहज जन-जीवन की कुछ सुनी, कुछ देखी, कुछ झेली व्यथा की कथा का मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और दार्शनिक विश्लेषण। साथ में इसके समानांतर चलती एक जीवन्त प्रेम कथा।
रत्नगर्भा धरती झारखंड प्रांत के गिरिडीह जिले के स्वातंत्र्योत्तर सातवें दशक से दसवें दशक के कालखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित अपने ढंग का एक अनूठा आंचलिक उपन्यास, जो अतीत को वर्तमान से जोड़ता और उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख करता है। यह उपन्यास एक ऐसा उपवन है जहाँ नुकीले काँटे भी हैं और सुवासित सुमन भी। पुटुस, सेमल और पलाश के पुष्प भी हैं तो चम्पा, चमेली और रातरानी की खुशबू भी। यह प्रतिनिधित्व करता है, समष्टिगत विश्लेषण करता है, भ्रमण कराता है सम्पूर्ण उपवन का, और साक्षात कराता है इसके विविध पुष्पों के जीवन का, दर्शन का। सहज जन-जीवन की कुछ सुनी, कुछ देखी, कुछ झेली व्यथा की कथा का मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और दार्शनिक विश्लेषण। साथ में इसके समानांतर चलती एक जीवन्त प्रेम कथा।
जन्मतिथि - ७ जुलाई १९५९, ग्राम - चंद्रमारनी, पोस्ट - सरिया, जिला - गिरिडीह (झारखंड) में एक साधारण कृषक परिवार में जन्म। पी.जी.सेन्टर हजारीबाग से अर्थशास्त्र में एम.ए.। पुन: राँची विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए.। विनोबा भावे विश्वविद्यालय से पी.एच.डी। वनांचल कॉलेज, गिरिडीह में अर्थशास्त्र के व्याख्याता। ‘आखिर क्यों?’ (उपन्यास), ‘शाक्यमुनि’ (प्रबंध काव्य) प्रकाशित। कई कहानियाँ आकाशवाणी हजारीबाग से प्रसारित। कई कविताएँ, कहानियाँ और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित। प्रभात खबर के द्वारा बेस्ट अचीवमेंट अवार्ड (साहित्य) से सम्मानित। साहित्यिक सेवा सतत् जारी।
Get the updates, tips and enhance your experience
Up to Top
Comments