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यह किताब सेरेब्रल पाल्सी नामक व्याधि से पीड़ित खिलाड़ी के जीवन पर आधारित है। जिसने 18 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय पैरा ओलंपिक तैराकी स्पर्धा में पदक जीता है। 10 साल की उम्र में जब वो तैराकी सीख रही थी उसके प्रोफेसर पिता का देहांत हो गया। पिता की मौत के बाद मां ने सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित अपनी बेटी को संभाला। यह उपन्यास एक मां की ममता के विश्वास की कहानी है। एक दिवंगत पिता की रूहानी शक्ति और अपने वंश को दिए आशीर्वाद की कहानी है। जीवन की टूट चुकी उम्मीदों से उभरकर सफलता के शिखर तक पहुंचने के संघर्ष की कहानी है। पति की मौत के बाद किस तरह 35 वर्षीय महिला ने अपनी अपाहिज बेटी को पढ़ाया, लिखाया और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाया। ये उपन्यास एक महिला की बेटी को सफल बनाने की जिद्द और समाज की रूढ़ीवादी सोच से आगे बढ़कर जीत की कहानी है।

Short Synopsis

यह किताब सेरेब्रल पाल्सी नामक व्याधि से पीड़ित खिलाड़ी के जीवन पर आधारित है। जिसने 18 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय पैरा ओलंपिक तैराकी स्पर्धा में पदक जीता है। 10 साल की उम्र में जब वो तैराकी सीख रही थी उसके प्रोफेसर पिता का देहांत हो गया। पिता की मौत के बाद मां ने सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित अपनी बेटी को संभाला। यह उपन्यास एक मां की ममता के विश्वास की कहानी है। एक दिवंगत पिता की रूहानी शक्ति और अपने वंश को दिए आशीर्वाद की कहानी है। जीवन की टूट चुकी उम्मीदों से उभरकर सफलता के शिखर तक पहुंचने के संघर्ष की कहानी है। पति की मौत के बाद किस तरह 35 वर्षीय महिला ने अपनी अपाहिज बेटी को पढ़ाया, लिखाया और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाया। ये उपन्यास एक महिला की बेटी को सफल बनाने की जिद्द और समाज की रूढ़ीवादी सोच से आगे बढ़कर जीत की कहानी है।

Author Bio

पत्रकार एवं लेखक मोरेश्वर राव उलारे का जन्म 21 अक्टूबर 1984 को क्षिप्रा नदी के तट पर बसी महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ। पिता श्रीसांवलराव उलारे माधव विज्ञान महाविद्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद से सेवानिवृत्त हुए एवं 14 अप्रैल 2021 को पिता का देहांत हो गया। 37 वर्षीय मोरेश्वर राव ने संस्कृत एवं अंग्रेजी साहित्य के साथ ग्रेज्यूएशन के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा कालिदास संस्कृत अकादमी से आचार्य कुल के अंतर्गत स्कॉलरशिप पर संस्कृत साहित्य एवं व्याकरण अध्ययन का अवसर मिला। एक साल तक अग्निबाण समाचार पत्र में पत्रकारिता सीखने के बाद देश के सबसे बड़े मीडिया समूह दैनिक भास्कर में बतौर पत्रकार सेवा का अवसर मिला। साल 2014 से 2020 तक पत्रकारिता धर्म निभाया। इसी दौरान खेल पत्रकारिता करते हुए दिव्यांग खिलाड़ियों से भी भेंट हुई और पत्रकारिता से आगे बढ़कर लेखन की नई शुरूआत हुई। तीन सालों से उपन्यास "सागर के परिंदे" पूरा करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन पत्रकारिता धर्म निभाने में दिन-रात जुटे रहने की वजह से उपन्यास पूरा नहीं हो पा रहा था। इसी की वजह से जून 2020 में दैनिक-भास्कर से नौकरी छोड़कर उपन्यास पूर्ण किया। उपन्यास पूरा होने के बाद वापस पत्रकारिता धर्म निभाने के लिए दैनिक भास्कर में नई शुरूआत की। वर्तमान में मोरेश्वर राव उलारे दैनिक-भास्कर शाजापुर में पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। इस किताब में वर्णित कहानी से जीवन के प्रति उनके कड़वे और मीठे अनुभवों की झलक साफ नजर आती है।

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