Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
"जैसे वीणा के तारों पर उँगलियों की थिरकन से ख़नक पैदा होकर मधुर संगीत निकलता है। प्यालों में पड़े जल को एक छड़ी के सहारे खनकाने से कर्णप्रिय ध्वनि निकलती है। ठीक उसी प्रकार समाज के अनेक अवयव के आपस में टकराने के जो ख़नक पैदा होती है उसके परिणामस्वरूप जीवन का संगीत निकलता है, ऐसा लेखिका का मानना है। बस शर्त यह होनी चाहिए कि सभी कुछ अनुशासन से शासित हो। साथ ही साथ अपने अपने स्थान का भी ध्यान रहे और दूसरे के पद प्रतिष्ठा का भी ज्ञान हो। ख़नक चाहे माँ बेटी के बीच का हो, चाहे सत्ता और समाज के बीच का हो। चाहे धर्म और धार्मिकता के बीच का हो,चाहे सामाजिक समरस्ता को क़ायम रखने की प्रतिबद्धता के लिए हो। सम्बन्धों की यही सकारात्मक ख़नक ज़िंदगी में रंग भर देती है। जीवन सुहावना बना देती है। लेखिका ने अपनी इस किताब की कहानियों में वर्णित काल्पनिक पात्रों की सहायता से पाठकों को बखूबी समझाने का प्रयास किया है कि वर्षों से चली आ रही रीति रिवाजों और परम्पराओं, जिनका आज कोई औचित्य नहीं रह गया है, उनको ध्वस्त कर आज के समय के अनुकूल रीति रिवाजों का गठन इस आपसी ख़नक के द्वारा कैसे सम्भव किया जा सकता है। स्वस्थ सामाजिक वाद विवाद और पारिवारिक वाद विवाद से कैसे सुखद जीवन जीने की राह निकाली जा सकती है ।"
"जैसे वीणा के तारों पर उँगलियों की थिरकन से ख़नक पैदा होकर मधुर संगीत निकलता है। प्यालों में पड़े जल को एक छड़ी के सहारे खनकाने से कर्णप्रिय ध्वनि निकलती है। ठीक उसी प्रकार समाज के अनेक अवयव के आपस में टकराने के जो ख़नक पैदा होती है उसके परिणामस्वरूप जीवन का संगीत निकलता है, ऐसा लेखिका का मानना है। बस शर्त यह होनी चाहिए कि सभी कुछ अनुशासन से शासित हो। साथ ही साथ अपने अपने स्थान का भी ध्यान रहे और दूसरे के पद प्रतिष्ठा का भी ज्ञान हो। ख़नक चाहे माँ बेटी के बीच का हो, चाहे सत्ता और समाज के बीच का हो। चाहे धर्म और धार्मिकता के बीच का हो,चाहे सामाजिक समरस्ता को क़ायम रखने की प्रतिबद्धता के लिए हो। सम्बन्धों की यही सकारात्मक ख़नक ज़िंदगी में रंग भर देती है। जीवन सुहावना बना देती है। लेखिका ने अपनी इस किताब की कहानियों में वर्णित काल्पनिक पात्रों की सहायता से पाठकों को बखूबी समझाने का प्रयास किया है कि वर्षों से चली आ रही रीति रिवाजों और परम्पराओं, जिनका आज कोई औचित्य नहीं रह गया है, उनको ध्वस्त कर आज के समय के अनुकूल रीति रिवाजों का गठन इस आपसी ख़नक के द्वारा कैसे सम्भव किया जा सकता है। स्वस्थ सामाजिक वाद विवाद और पारिवारिक वाद विवाद से कैसे सुखद जीवन जीने की राह निकाली जा सकती है ।"
"वैसे तो मृदुला श्रीवास्तव ने राजनीति विज्ञान में एम ० ए ० की डिग्री और गाँधीयन थौट में एम० फिल० की उपाधि हासिल की है। लेकिन इनका रुझान हमेशा से साहित्य की तरफ रहा है। समाज को लेकर संवेदनशीलता और जागरूकता इनके स्वभाव में व्याप्त है। यही वजह है कि समाज में रचे बसे तरह तरह के चरित्र को समझने का हुनर रखती हैं। समाज की वेदना को समझना और समझ कर अपनी लेखनी के द्वारा समाज की चेतना को जागृत करने के लिए प्रयासरत रहती हैं। भारत के विभिन्न सांस्कृतिक और भाषाई राज्यों में बहुतायत समय गुजार कर वहाँ की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक माहौल को समझने का अवसर प्राप्त किया है। इन्होंने जीवन की आपाधापी में उलझ कर कभी भी अपने लिखने पढ़ने के हौसले को मृत नहीं होने दिया। पिछले कई सालों से लेखन क्रिया के पीछे लगी हुई हैं। पत्रिकाओं में लेख लिखते रहीं हैं। ‘लघु कहानियों के संग्रह' के रूप में ‘खनक' शीर्षक से यह इनकी दूसरी किताब है, जो कि इनके अनुभवों की एक प्रतिलिपि है। इस किताब में इन्होंने अपनी संवेदनाओं को , अपनी लेखनी में पीरों कर काल्पनिक पात्रों के द्वारा किताब का रूप देने का प्रयास किया है।"
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