Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
प्रस्तुत उपन्यास “आखिर कानून को किसने बेचा?" एक ऐसी पुस्तक है, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भ्रष्टाचार और नियम-कानून की वीभत्स स्थिति को दर्शाती है।
आज नियम-कानून एक ऐसा ढोल बन गया है , जिसे जो चाहे, जब चाहे , जितना चाहे, जैसे चाहे बजा जाता है। थाना , कोर्ट- कचहरी नामक मंडियों में सरेआम नियम-कानून बेचा जाने लगा है। तमाम सरकारी पदों पर बैठे नियम-कानून के विक्रेता बड़ी शान से अच्छे मूल्य पर नियम-कानून बेचने में गर्व महसूस कर रहे हैं। आज कानून वही है , जो एक अदना-सा सरकारी कर्मचारी से लेकर उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी चाहता है , वह नहीं जो हमारे कानून की किताबों में अंकित हैं ।और ये कानून के मंडी के दलाल वकील , कानून के रक्षक एक सिपाही से लेकर थानेदार , पुलिस अधीक्षक , कानून मंत्री तक और ये कानून के तथाकथित संपोषक उच्च सरकारी पदों पर बैठे पदाधिकारी से लेकर चपरासी तक कानून का मंडी सजाकर बैठे हैं , जहांँ हमारे ही बीच के चतुर , चालक , अवसरवादी , धूर्त धनपति से लेकर आम जनता तक नियम-कानून का खरीद-फरोख्त में संलग्न है। आज देश को किसी दुर्दांत अपराधी , नक्सली , उग्रवादी , आतंकवादी से कहीं ज्यादा खतरा इस भ्रष्टाचार के छत्रछाया में नियम-कानून की मंडी सजाकर बैठे कानून के दलालों, विक्रेताओं से ज्यादा है। यह देश के लिए चिंतनीय विषय है।
प्रस्तुत उपन्यास “आखिर कानून को किसने बेचा?" एक ऐसी पुस्तक है, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भ्रष्टाचार और नियम-कानून की वीभत्स स्थिति को दर्शाती है।
आज नियम-कानून एक ऐसा ढोल बन गया है , जिसे जो चाहे, जब चाहे , जितना चाहे, जैसे चाहे बजा जाता है। थाना , कोर्ट- कचहरी नामक मंडियों में सरेआम नियम-कानून बेचा जाने लगा है। तमाम सरकारी पदों पर बैठे नियम-कानून के विक्रेता बड़ी शान से अच्छे मूल्य पर नियम-कानून बेचने में गर्व महसूस कर रहे हैं। आज कानून वही है , जो एक अदना-सा सरकारी कर्मचारी से लेकर उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी चाहता है , वह नहीं जो हमारे कानून की किताबों में अंकित हैं ।और ये कानून के मंडी के दलाल वकील , कानून के रक्षक एक सिपाही से लेकर थानेदार , पुलिस अधीक्षक , कानून मंत्री तक और ये कानून के तथाकथित संपोषक उच्च सरकारी पदों पर बैठे पदाधिकारी से लेकर चपरासी तक कानून का मंडी सजाकर बैठे हैं , जहांँ हमारे ही बीच के चतुर , चालक , अवसरवादी , धूर्त धनपति से लेकर आम जनता तक नियम-कानून का खरीद-फरोख्त में संलग्न है। आज देश को किसी दुर्दांत अपराधी , नक्सली , उग्रवादी , आतंकवादी से कहीं ज्यादा खतरा इस भ्रष्टाचार के छत्रछाया में नियम-कानून की मंडी सजाकर बैठे कानून के दलालों , विक्रेताओं से ज्यादा है। यह देश के लिए चिंतनीय विषय है।
लेखन और अध्यापन के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में सक्रिय सहभागिता तथा झारखंड के घने जंगलों , कंदराओं , नदी , झरनों , पहाड़ों के बीच प्रकृति की गोद में भ्रमण में गहरी रुचि । “ नवसृजन सम्मान 2014 " से सम्मानित । शैक्षिक क्रांति में अतुलनीय योगदान के लिए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच के द्वारा “ ग्लोबल गुरु शिक्षाविद सम्मान 2021 " से सम्मानित तथा उत्कृष्ट लेखन के लिए भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा “ बाबा साहब डॉक्टर
भीमराव अंबेडकर नेशनल फेलोशिप अवार्ड 2021" से सम्मानित । भारतीय साहित्य परिषद द्वारा 2023 में सम्मानित हैं।
कहानी संग्रह -:
1. कुसुम
2. सरई फूल
3. वनस्थली
उपन्यास -:
1. एक नक्सली का मौन प्रेम
2. माटी
3. एक आतंकवादी की प्रेम कथा
4. पुष्पी
5. आखिर कानून को किसने बेचा?
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