Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
"गुल की महक पुस्तक मेरे हाथों मंे हैं पुस्तक में 75 कवितायें हैं । इस पुस्तक का साहित्याकाष में कितना ऊँचा स्थान है यह समय तय करेगा । लेकिन पारिवारिक और सामाजिक अलगावों को खत्म कर फिर से जोड़ने का काम यह पुस्तक हर घर में कर सकेगी । जैसे- टूटते रिष्ते भाई के; कविता में जहाँ भाइयों के प्रेम और स्नेह का विषद वर्णन है वहीं ‘नारी वेदना’ में वर्तमान में नारी की दषा का वर्णन करते षब्द । अपनी कविताओं में श्री बमनयां जी ने अपनी कविताओं में आदिवासी जननायक महान क्रांतिकारी विरसा मुण्डा को भी स्थान दिया है। इस पुस्तक में कवि श्री बमनयां जी ने महाकवि सूरदास, महाकवि तुलसीदास, कबीर, रविदास, मीरा और मैथिलीषरण गुप्त आदि पर कवितायें लिखकर उन्हें सादर आदरांजलि भेंट की। महापुरूषों में महानायक भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवनराम षहीद ऊधमसिंह, महाराजा खेतसिंह और महाराजा खलकसिंह जूदेव को अपने काव्य में स्थान देकर अपनी लेखनी को धन्य किया । अपने गृह नगर खनियांधाना पर कविता लेखन से कवि बमनयां जी का मातृभूमि से प्रेम प्रकट होता है। सुबह की सैर, ताले चाबी का संगम, माँ की ममता, बिका हुआ मतदाता और नौकरी की आकांक्षा वर्तमान परिवेष को उजागर करती कवितायें हैं जो हर युवा के विचारों में उथल पुथल मचाने में सक्षम हैं ।
नारी वेदना के साथ ही नारी षक्ति के विषय में भारत की वीरांगनायें इन कविताओं में यह दर्षित करती हैं, कि नारी कमजोर नहीं। आरंभ में ही गणेष, गुरू और माँ सरस्वती वंदना अप्रतिम सुंदर और श्रष्ठ बन पड़ी हैं । दलित की दषा, मजदूर का पसीना और वर्ण व्यवस्था जैसी कवितायें भारत की सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार हैं और उनमें सुधारात्मक पहलू नजर आते हैं ।
स्वामी विवेकानंद और चन्द्रषेखर आजाद जैसे महान मनीषी और क्रांतिकारियों पर अपने काव्य में कलम चलाकर बड़ा ही उत्कृष्ट कार्य किया है ।
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह पुस्तक बहुत ही अच्छी बन पड़ी है यह पुस्तक अपने घरों और पुस्तकालयों में रखने योग्य है, जिससे अनेक प्रसंगों की जानकारी एक साथ ग्रहण की जा सके ।
"गुल की महक पुस्तक मेरे हाथों मंे हैं पुस्तक में 75 कवितायें हैं । इस पुस्तक का साहित्याकाष में कितना ऊँचा स्थान है यह समय तय करेगा । लेकिन पारिवारिक और सामाजिक अलगावों को खत्म कर फिर से जोड़ने का काम यह पुस्तक हर घर में कर सकेगी । जैसे- टूटते रिष्ते भाई के; कविता में जहाँ भाइयों के प्रेम और स्नेह का विषद वर्णन है वहीं ‘नारी वेदना’ में वर्तमान में नारी की दषा का वर्णन करते षब्द । अपनी कविताओं में श्री बमनयां जी ने अपनी कविताओं में आदिवासी जननायक महान क्रांतिकारी विरसा मुण्डा को भी स्थान दिया है। इस पुस्तक में कवि श्री बमनयां जी ने महाकवि सूरदास, महाकवि तुलसीदास, कबीर, रविदास, मीरा और मैथिलीषरण गुप्त आदि पर कवितायें लिखकर उन्हें सादर आदरांजलि भेंट की। महापुरूषों में महानायक भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवनराम षहीद ऊधमसिंह, महाराजा खेतसिंह और महाराजा खलकसिंह जूदेव को अपने काव्य में स्थान देकर अपनी लेखनी को धन्य किया । अपने गृह नगर खनियांधाना पर कविता लेखन से कवि बमनयां जी का मातृभूमि से प्रेम प्रकट होता है। सुबह की सैर, ताले चाबी का संगम, माँ की ममता, बिका हुआ मतदाता और नौकरी की आकांक्षा वर्तमान परिवेष को उजागर करती कवितायें हैं जो हर युवा के विचारों में उथल पुथल मचाने में सक्षम हैं ।
नारी वेदना के साथ ही नारी षक्ति के विषय में भारत की वीरांगनायें इन कविताओं में यह दर्षित करती हैं, कि नारी कमजोर नहीं। आरंभ में ही गणेष, गुरू और माँ सरस्वती वंदना अप्रतिम सुंदर और श्रष्ठ बन पड़ी हैं । दलित की दषा, मजदूर का पसीना और वर्ण व्यवस्था जैसी कवितायें भारत की सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार हैं और उनमें सुधारात्मक पहलू नजर आते हैं ।
स्वामी विवेकानंद और चन्द्रषेखर आजाद जैसे महान मनीषी और क्रांतिकारियों पर अपने काव्य में कलम चलाकर बड़ा ही उत्कृष्ट कार्य किया है ।
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह पुस्तक बहुत ही अच्छी बन पड़ी है यह पुस्तक अपने घरों और पुस्तकालयों में रखने योग्य है, जिससे अनेक प्रसंगों की जानकारी एक साथ ग्रहण की जा सके ।
मैं निवेदन करता हूँ कि गुल की महक कविता संग्रह के रुप में आप के हाथों में सोंपतें हुए असीम प्रसन्नता का अनुभव कर रह हूँ। इस संग्रह में प्रकाशित कविताएँ जनमानाके द्वारा पढ़ने पर मानस पटल पर जरुर अपनी छाप छोढ़ेगी।
मेरे कविता़ संग्रह गुल की महक में ऐसी कविताओं को समाहित किया हैंजिसमें मेरे विचार , भावना ,कल्पना एवं भावों से सनी हुई हैं। मेरे रचनाओं में प्रकृति ,गुरु, महापुरुषों , समय की रफतार ,मजदूर,वर्ण व्यवस्था, छुआछूत,जातिवाद,राजनीति, भ्रष्टाचार, गरीबी, राजनीति, नारी की दषा, भाइयों के रिष्ते,सपूत वीरांगनाएँ,समाजिक बुराई, जैसी अनेक विषमताएँ समाज में व्याप्त हैं। जो दलितों एवं निम्नतरहों के लोगों के लिए चिन्ता का विषय है।यह कविता संग्रह मेरा प्रथम प्रयास है। इसलिए इसमें निश्चित ही कमिया होंगी। सुधि पाठकों के लिए यह कविता संग्रह एवं पुस्तक ही नहीं है। बल्कि मेरी कल्पना में। स्वाभाविक रुप से आजकल समाज में जो घटित हो रहा हैं उसकी यह एक असलियत की बानगी है। इस कविता संग्रह के प्रकाशन में मेरे परम पूज्यनीय गुरु जी श्री बाबूलाल यादव जी शिक्षक , मेरे परम सहयोगी श्री इंदरसिह अरसेला शिक्षक परम मित्र श्री रामगोपाल शर्मा,तथा प्रातः काल सैर करने वाले अनुज श्री राकेष परिहार (नन्ना) एवं सभी चाहने वालों ने समय-समय पर मुझे लिखने की प्रेरणा दी है।
समय-समय पर मेरी जीवन संगिनी श्रीमती प्रेमबाई बमनयॉ का लिखने के दौरान पूर्ण सहयोग़ मिलता रहा । जिसमे यह संग्रह पूर्ण हो पाया, मै इनका बहुत-बहुत आभारी हूँ और भविष्य में भी रहूँगा।
इसके साथ ही अंजूमन प्रकाशन इलाहबाद प्रयागराज (उत्तर प्रदेष) की प्रकाशन टीम को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। जिन्होंने इतने कम समय में मेरा कविता संग्रह प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी सहयोग प्रदान किया।
मैं आशा ही नहीं प्रूर्ण विष्वास करता हूँ कि पाठक गण पूर्ण ईमानदारी से अपने सुझाव देकर मुझे अवगत कराएँगे।
आपका
बैजनाथ प्रसाद बमनयॉ(प्रधानध्यापक)
रेतगोई मौहल्ला वार्ड नं. 02
खनियांधाना जिला शिवपुरी म.प्र.
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