Anjuman Prakashan
Joined - September 2024
आप सब की ख़ातिर कही अनकही बहुत कुछ मन की बातें मीना की सोच बंजारा ये मन लिखी है , इस किताब में जीवन के छोटे बड़े , नए पुराने ,सूक्ष्म व दीर्घ विचारों की कड़ियों को हल्के बिखराव के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैठे बैठे यूंही ख़याल आया आज दिल ने आवाज़ लगाई और लफ़्ज़ों को कलम से मिलाया , मन की बातों में फिर, मौसम रंग लाया , लिखते लिखते हमें फिर . खुद पे प्यार आया , नाज़ुक सी कलम ने इस दिल को जगाया, आज हमने खुदको , खुद से ही मिलाया मीना की सोच बंजारा ये मन
आप सब की ख़ातिर कही अनकही बहुत कुछ मन की बातें मीना की सोच बंजारा ये मन लिखी है , इस किताब में जीवन के छोटे बड़े , नए पुराने ,सूक्ष्म व दीर्घ विचारों की कड़ियों को हल्के बिखराव के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैठे बैठे यूंही ख़याल आया आज दिल ने आवाज़ लगाई और लफ़्ज़ों को कलम से मिलाया , मन की बातों में फिर, मौसम रंग लाया , लिखते लिखते हमें फिर . खुद पे प्यार आया , नाज़ुक सी कलम ने इस दिल को जगाया, आज हमने खुदको , खुद से ही मिलाया मीना की सोच बंजारा ये मन
"मेरा परिचय मैं समझती हू्ं एक रचनाकार में आत्म जिज्ञासू प्रवृत्ति जितनी ज़्यादा होगी उनकी रचनाओं में दार्शनिक तत्व उतना की परिपक्व होगा। प्रेम ,विरह , मिलन का सौंदर्य ,आध्यात्म ऐसे विशेष हैं जो मिलकर जीवन का दर्शन निर्मित करते है! अपनी बात कहूँ तो मेरे लेखन का प्रारंभ शायद अपने स्वयं के विचारों से मुक्ति पाने के लिए हुआ था, धीरे - धीरे कब यही मेरे जीवन का ध्येय बन गया पता नहीं चला ।
चला फ़क़ीर जिस राह मैं न चल सकी उनके जाने के बाद उग आईं थीं अनेक हरी बेलें उस राह पर जहां से गुजरा थी फ़क़ीर उन बेलों को कुचला जाना मंज़ूर न था मुझे चाहती थी हरियाली ता - उम्र बेलों की हरियाली
उतर आईं हैं मेरे भीतर और ज़िंदा था फ़क़ीर इस तरह मेरे भीतर !"
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