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पाँच पुरुषों को वरण करने वाली दी, अपने पतियों के कारण कुरु-सभा में अपमानित हुई, उसके उपरांत भी उसने ‘वरदान’ शब्द में लिपटी दया के माध्यम से उनको दासता से मुक्त करवाया और उनके अस्तित्व, स्वाभिमान और शक्ति की रक्षा के लिए ऊर्जा प्रदान करती वन-वन भटकती रही। पंच-पतियों के प्रति सेवा, भाव, निष्ठा और कर्तव्य-निर्वाह के कारण जहाँ एक ओर सती के आसन पर विराजमान हुई| वहीं पंच-पति वरण के कारण एक युग के पश्चात् भी व्यंग्य, विद्रूप का पात्र बनी रही। विचित्र है उसका जीवन; किन्तु विचित्रता और अंतर्विरोध के बीच वह सदैव विशिष्ट रही। दी, नारी की सशक्त गाथा है। हज़ारों वर्षों से स्त्री, टुकड़ों-टुकड़ों में दी को जी रही है| कहीं वह अपमान और लांछना सहती है, तो कहीं पुरुष के भीतर की ऊर्जा बनती है। कहीं त्याग से उसके उत्थान की सीढ़ी बनती है, तो कहीं पुरुष के अहं के आगे विवश हो जाती है

Short Synopsis

पाँच पुरुषों को वरण करने वाली दी, अपने पतियों के कारण कुरु-सभा में अपमानित हुई, उसके उपरांत भी उसने ‘वरदान’ शब्द में लिपटी दया के माध्यम से उनको दासता से मुक्त करवाया और उनके अस्तित्व, स्वाभिमान और शक्ति की रक्षा के लिए ऊर्जा प्रदान करती वन-वन भटकती रही। पंच-पतियों के प्रति सेवा, भाव, निष्ठा और कर्तव्य-निर्वाह के कारण जहाँ एक ओर सती के आसन पर विराजमान हुई| वहीं पंच-पति वरण के कारण एक युग के पश्चात् भी व्यंग्य, विद्रूप का पात्र बनी रही। विचित्र है उसका जीवन; किन्तु विचित्रता और अंतर्विरोध के बीच वह सदैव विशिष्ट रही। दी, नारी की सशक्त गाथा है। हज़ारों वर्षों से स्त्री, टुकड़ों-टुकड़ों में दी को जी रही है| कहीं वह अपमान और लांछना सहती है, तो कहीं पुरुष के भीतर की ऊर्जा बनती है। कहीं त्याग से उसके उत्थान की सीढ़ी बनती है, तो कहीं पुरुष के अहं के आगे विवश हो जाती है

Author Bio

Shachi Mishra

24 अप्रैल, 1955 को गोरखपुर में जन्म, एम. ए. (हिन्दी) दीनदयाल उपाध्याय विवि गोरखपुर,उ.प्र. से, केन्द्रीय विद्यालयों (भुज, गुजरात और रानीखेत उत्तराखण्ड) में शिक्षण कार्य, चार पुस्तकें पूर्व में प्रकाशित, वर्तमान में हडपरसर, पुणे में निवास|

 

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