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संसार असार है, मिथ्या है। जन्म, मृत्यु, रोग और जरा का कुचक्र है। उसे मोक्ष चाहिए। उसे लगता था कि कामनाओं से मुक्त होकर ही मोक्ष मिलेगा। और कामनाओं पर नियंत्रण के लिए सजग और सतत प्रयास चाहिए। किसी अज्ञात प्रेरणा से संचालित होकर उसने ब्रह्मचर्य का रास्ता चुना। किन्तु भावनाओं के उद्दाम वेळ ने उसे प्रेम तट पर ला फेंका। भारतीय अध्यात्म के चिरंतन द्वंद्व, वैराग्य और गृहस्थ के बीच वह झूलने लगा। उपन्यास नायक के इस द्वंद्वात्मक सफ़र और नायिका के इस्पाती इरादे को रोचक तरीके से उकेरता है। कहानी में समय से पूर्व परिपक्व हो चुकी तेरह वर्षीया विदिशा भी आती है जो पिता के अधूरे सपने को अपना बना लेती है। कथा-प्रवाह और अनूठी लेखन शैली इसे पठनीय कृति बनाती है।.

Short Synopsis

संसार असार है, मिथ्या है। जन्म, मृत्यु, रोग और जरा का कुचक्र है। उसे मोक्ष चाहिए। उसे लगता था कि कामनाओं से मुक्त होकर ही मोक्ष मिलेगा। और कामनाओं पर नियंत्रण के लिए सजग और सतत प्रयास चाहिए। किसी अज्ञात प्रेरणा से संचालित होकर उसने ब्रह्मचर्य का रास्ता चुना। किन्तु भावनाओं के उद्दाम वेळ ने उसे प्रेम तट पर ला फेंका। भारतीय अध्यात्म के चिरंतन द्वंद्व, वैराग्य और गृहस्थ के बीच वह झूलने लगा। उपन्यास नायक के इस द्वंद्वात्मक सफ़र और नायिका के इस्पाती इरादे को रोचक तरीके से उकेरता है। कहानी में समय से पूर्व परिपक्व हो चुकी तेरह वर्षीया विदिशा भी आती है जो पिता के अधूरे सपने को अपना बना लेती है। कथा-प्रवाह और अनूठी लेखन शैली इसे पठनीय कृति बनाती है।.

Author Bio

Bhanu Prakash

झारखंड के किसी गुमनाम हिस्से में जीवन का पूर्वार्ध गुजारने वाले भानू प्रकाश अब देश के विभिन्न हिस्सों में विचरण कर रहे हैं। स्थायी ठिकाना कुछ किताबें और एकांत है। स्वयं से संवाद करने की आदत बढ़ते-बढ़ते लेखक बना गयी और बातों-बातों में एक कृति ‘तुझसे नारा़ज नहीं ज़िन्दगी’ तैयार हो गयी। जिसे संवेदनशील पाठकों ने काफी पसंद किया। शिक्षा से इंजिनियर, पेशे से बैंकर और मिजाज से लेखक की दूसरी कृति ‘संत मनमौजी’ फिर से पाठकों की संवेदनाओं को झकझोरने के लिए तैयार है।.

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